पपीता की खेती की संपूर्ण जानकारी

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मृदा और जलवायु (Soil and climate)                          

यह एक उष्णकटिबंधीय फल है और उन क्षेत्रों में अच्छी तरह से बढ़ता है, जहां गर्मी का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस – 38 डिग्री सेल्सियस तक होता है।  ठंढ को सहन करता है और समुद्र तल से 1200 मीटर की ऊँचाई पर लग सकता है ।(पपीता)

 

बीज मात्रा (Seed rate)

एक हेक्टेयर रोपण के लिए 500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।बीज समय  जून-सितंबर रोपण के लिए सबसे अच्छा मौसम होता है।  बारिश के मौसम में पौधे को लगाने से बचना चाहिए।

बीज उपचार (Seed treatment)

बीजों को कैप्टान @ 2 ग्राम / किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करना चाहिए।  पॉलीथिन की थैलियों में चार बीज डुबोएं गहराई एक सेमी से अधिक नहीं रखना चाहिए ।  पॉलीथिन की थैलियों को आंशिक छाया में रखना चाहिए और नमी को बनाए रखना चाहिए।  सीडलिंग लगभग 60 दिनों में तैयार हो जाती है।                                       यापौधशाला में बीजों या पौधों को आर्द्रपतन रोग से बचाने के लिए क्यारियों को बुवाई से 15 दिनों पहले ही 2.5 % फॉर्मल्डिहाइड के घोल से उपचारित करने के 48 घंटे बाद पॉलिथीन से ढककर कीटाणुरहित कर लेना चाहिए।

प्रजाति (Cultivar)

कूर्ग हनी ड्यू, पूसा ड्वार्फ, पूसा जायंट, पूसा मेजेस्टी, पूसा डिलीशियस,  पूसा बौना, CO.1, CO.2, CO.3, CO.5, वाशिंगटन, रांची, IIHR39 और IIHR54, ताइवान -785, ताइवान -786।

रोपण (Planting)

पौधे की रोपाई 1.8 मीटर या तो 45 सेमी x 45 सेमी x 45 सेमी आकार के गड्ढों में करना चाहिए।

सिंचाई (Irrigation)

रोपण के बाद आवश्य मात्रा में सिंचाई करें।  सप्ताह में एक बार खेत की सिंचाई आवश्यक है करना।

उर्वरकों का अनुप्रयोग(Application of fertilizer)

(फार्म यार्ड मेनूर) FYM यानी सड़ी गोबर की खाद जिसमें जीवंश की मात्रा 0.80 से अधिक हो10 किग्रा /प्लांट ,बेसल के रूप में और NPK 50 ग्राम प्रत्येक पौधे में  तीसरे महीने से द्वि-मासिक अंतराल पर देना चाहिए।पौधे लगाने के छह महीने बाद फिर से एज़ोस्पिरिलम और फॉस्फोबैक्टीरियम प्रत्येक पौधे में 20 ग्राम देना चाहिए।                                        या90 ग्राम यूरिया, 250 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट एवं 110 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश का मिश्रण मिलाकर पौधे के तने से दूर 1 इंच गहरा गोलाकार गड्ढा बनाकर प्रत्येक पौधे को क्यारी में लगाने के बाद 2 महीने के अंतराल पर 6 बार अवश्य प्रयोग करना चाहिए।

फर्टिगेशन 

(Fertigation technology) (फर्टिगेशन = सिचाई के पानी + उर्वरक)

खेत में सिचाई एवं उर्वरक देने की नवीनतम तकनीक है ।जिसके अंतर्गत उर्वरको के मिश्रण को सिचाई के काम में लिए जाने वाले पानी के साथ मिला कर ड्रिप सिचाई संयंत्र के माध्यम से पौधों या फसलों को बराबर मात्रा में वितरित करना फर्टिगेशन कहलाता है | फर्टिगेशन माध्यम से की गई सिचाई से पौधों को पौषक तत्वों के उपलब्धता अधिक रहती है , इसलिए उर्वरको की कार्य दक्षता अधिक हो जाती है |प्रतिदिन 10 लीटर पानी + 13.5 ग्राम यूरिया और 10.5 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश / सप्ताह, टपक सिंचाई के माध्यम से  लगाना चाहिए ।सुपर फास्फेट 300 ग्राम प्रति पौधे की दर से अनचाहे पौधे को निकालने के बाद (Thinning) तुरंत देना चाहिए, जब पौधा 3-4 महीने का हो जाये , और इसको द्विमासिक के अंतराल पर देना चाहिए।

खेती के बाद (After Cultivation)

बगीचे में प्रत्येक 100 पौधों पर कम से कम 10 नर पौधों को निषेचन के लिए अवश्य रखना चाहिए। केवल उत्तम नर पौधों को ही  रखना चाहिए व अन्य पौधों को उखाड़ देना चाहिए। अंत में प्रत्येक गढ्ढे में केवल एक ही स्वस्थ पौधा रखना चाहिए।

सूक्ष्म पोषक (Micronutrients)

विकास और उपज  को बढ़ाने के लिए 4 और 8 वें महीने के दौरान  (जिंक सल्फेट)ZnSO4 0.5% +उच्च गुणवत्ता बोरिक एसिड (H2BO3)  0.1% का छिड़काव करना चाहिए।

पौध – संरक्षण (Plant Protection)

नेमाटोड

नर्सरी में नेमाटोड इन्फेक्शन को नियंत्रित करने के लिए, अंकुरण के बाद कार्बोफ्यूरान 3 जी @ 1 ग्राम / पॉलीथीन बैग लगायें।

रोग (Diseases)

पपीता रिंग स्पॉट वायरस

वैक्टर के लिए मक्का को फसल के रूप में उगाएं।  वैक्टर को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक का छिड़काव करें।  पखवाड़े के अंतराल पर सूक्ष्म पोषक स्प्रे।*वेक्टर -जो रोग को फैलने में मदद करते हैं ।

जड़ सड़न और विल्ट

पानी के ठहराव वाले क्षेत्रों में रूट-रोट आसानी से दिखाई दे सकते हैं।  मिट्टी को 0.1% मेथोक्सीएथिल म्यूरिक क्लोराइड या 1% बोर्डो मिश्रण या मेटालैक्सिल 0.2%, 2 या 4 बार पखवाड़े के अंतराल पर मिट्टी में डुबोना उचित है।  बीमारी के प्रसार से बचने के लिए अच्छा जल निकासी महत्वपूर्ण है।                                      यासड़न रोग से बचाव हेतु कवकनाश ब्लिटाक्स 0.3% के घोल का छिड़काव पौधों के तनों एवं थालों में कर देना चाहिए।पौधों के तनों के चारों ओर मिट्टी अवश्य चढ़ा देना चाहिए। 

फसल अवधि (Crop Duration)

फसल  की अवधि 24 से 30 तक  होती है।

कटाई (Harvest)

जब पपीता अपने रंग को छोड़ता है (Colour Break Stage) तो तुड़ाई करनी चाहिए।

उपज (Yield)

औसत उपज इस प्रकार है

 CO2: 200-250t / हेक्टेयर
 CO3: 100-120t / हेक्टेयर
 CO5: 200-250t / हेक्टेयर
 CO6: 120-160t / हेक्टेयर
 CO7: 200-225t / हेक्टेयर
 CO 8: 220- 230 t /हेक्टेयर

अंकुरण सुधार (Germination improvement)

बीजों को एयरटाइट कंटेनर में रखना चाहिए।  बीज को 100 ppm GA3 , 16 घंटे या 2% ताजे पत्तों से अरप्पू के पौधे से  या 1% पुंगम की पत्ती या अरप्पू के पत्तों के पाउडर से बीजों को छान लें।

बुवाई की अधिकतम गहराई (Depth of sowing)

अच्छे अंकुरण और अंकुर विकास के लिए 1 सेमी गहराई पर बीज को बोना चाहिए ।

भंडारण (Storge)

सूखे बीजों को 8-10% नमी पर रखें और हलोजन मिश्रण के साथ इलाज करें, जिसमें कैल्शियम ऑक्सिक्लोराइड (CaOCl2), कैल्सियम कार्बोनेट (CaCO3) और अरप्पू लीफ पाउडर (5: 4: 1 अनुपात) @ 3 ग्राम / किग्रा हो और इसे कपड़े की थैली में पैककर हम इसको  5 महीने तक भण्डारण कर सकतें हैं ।

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✍️बगीचे में प्रत्येक 100 पौधों पर कम से कम 10 नर पौधों को निषेचन के लिए अवश्य रखना चाहिए। केवल उत्तम नर पौधों को ही  रखना चाहिए व अन्य पौधों को उखाड़ देना चाहिए। ✍️नर पौधा वह होता है जिसमे फल काफी छोटा आता और उसमें फूल ज्यादा आते हैं। फूल की टहनी काफी बड़ी होती है।
?बीज के लिए किसान भाई 08726137132 इस नम्बर पर फोन कर सकते हैं।?
✍️इस प्रजाति को अगर लेना है तो ?????

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